सोमवार, 23 जुलाई 2012



क्यों आखिर क्यों?
क्यों आखिर क्यों?
यह समाज........
लडकियों के लिए असुरछित माहोल बना रहा हे,
और सरकार मौन होकर सब देख रही हे,
क्यों.....आखिर क्यों?
उनकी योनिकता को उनकी कमजोरी बना,
अत्याचार और शोषण कर रहा हे,
क्यों.....आखिर क्यों?
चुप बेठे हे,
सब सत्ता के गलियारे में,
चलो हम सब साथ मिलकर चलते हे,
खोल देगे नीद सोते हुए समाज की,
दिखा देगे की क्या हस्र होता हे,
किसी के ऊपर लगातार जुल्म-ओ -सितम करने के,
हम चुप नही बैठेगे,ना बनने देगे ऐसा माहोल
जहा दोयम दर्जे पर देखि जाती हे ओरते!!


डर लड़की होने का

एक डर जो पनपने नहीं देता हमारे सपने,
हमेसा चिपका रहता हे,
हमारे अस्तित्व से-
जो हर बक्त एहसास दिलाता हे हमें/
की तुम लड़की हो,
और कभी भी शिकार हो सकती हो,
किसी की भी ज्यादती की!!

लडकिया
कितना कुछ सह जाती हे लडकिया,
अक्सर चुप रह जाती हे लडकिया!

कहा तक हिफाजत रखे अपनी जब
घर में ही बेआबरू हो जाती हे लडकिया! 

अक्सर चाह कर भी नहीं कर पाती कुछ भी,
अरमानो का गला घोट रह जाती हे लडकिया!

बदल लेती हे बक्त के साथ खुद को,
हर हाल में ढल जाती हे लडकिया!

घर से निकलते ही,घूरती हे कई निगाहे इनको,
हर नजर को नजरंदाज कर आगे बड जाती हे लडकिया!

बेटी किसी की, बहिन कभी,प्रेमिका भी होती,
रिस्तो के रंगों में रंग जाती हे लडकिया!

मुर्दों से बात नहीं करनी...

हो रहे अन्याय को देख,
वंचितों के मारे जा रहे हक़ को देख,
बड़ते जा रहे काले धंदो को देख,
किसी को भूख से मरता देख,
बेरोजगारी से आम आदमी को लड़ता देख
सरकारी योजनाओ को सिर्फ कागजो पर क्रियान्वित होता देख
,
अगर तुम्हारे मन में,इस तंत्र के खिलाप गुस्सा नहीं आता,
और/ क्रांति करने का मन नहीं होता तो,
मुझे तुमसे कुछ नहीं कहना,
क्योकि में मुर्दों से बात नहीं किया करता..

बचाब.........

तुम......
किस्मत के भरोसे
रहकर के,
नहीं बढ़ाते हो एक भी कदम,
अपनी सफलता के लिए,
इसलिय /तुम
असफल हो जीवन में !
तुम नहीं चाहते
कि-तुम्हे करनी पड़े मेहनत
अपनी सफलता के लिए,
इसलिय
अपनी नाकामी के लिए
तुम/अपनी
किस्मत को बीच में ले आते हो!

मेरी उलझन............
आज तक समझ में नहीं आया,
जिन्दजी में सबसे जरुरी क्या हे,
कभी लगा की परिवार से बड़कर कुछ भी नहीं,
फिर प्यार को परिवार से ज्यादा महत्वता देने लगा,
कुछ दोस्त आये ऐसे फिर,
जिनके सामने प्यार का जूनून भी फीखा लगा,
अब लगता हे क्या यह व्यक्तिगत जिन्दगी ही,
क्या सब कुछ हे इन्सान को जिन्दगी भर के किये,
तो अपना दायरा सामाजिक गतिविधियों में भी बढाया,
और जब लगा यहाँ भी स्वार्थ सिध्दी हे,
और लोट कर बुध्दू घर को आया,
और अंत में यही समज पाया,

जीवन एक चक्र हे, 
हम जहा से शुरुवात करते हे,
आखिर में भी बही पहुचना अपनी मंजिल पा लेना लगता हे.!!

हम भी हे---------?
हम भी हे संतान तुम्हारी,
हमसे न यु द्वेस भाव रखो,
मत मारो,कोखो में ही हमहो,
न यु तादात हमारी कम करो

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

भूख के आगोश में खत्म होती जिंदगी





भारत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के लिए कुपोषण व भुखमरी जैसी समस्याएं
सालों से बड़ा सिरदर्द बनी हुई हैं। भारत के करीब छह सौ से अधिक जिलों में जिस
कदर कुपोषण के मामले सामने आ रहे हैं, वह गंभीर है। पूरे विश्व में हर दिन करीब
18 हजार बच्चे भूखे मर रहे हैं। विश्व की करीब 85 करोड़ आबादी रात में भूखे पेट
सोने के लिए विवश है। पूरी दुनिया में करीब 92 करोड़ लोग भुखमरी की चपेट में हैं
जबकि भारत में 425 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।
यह बहुत ही चिंताजनक है कि पूरे विश्व में 60 फीसद बच्चों की मौत भूख से होती
है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 12 लोगों में एक व्यक्ति कुपोषण का
शिकार है। वर्ष 2006 में भूख या इससे होने वाली बीमारियों के कारण 36 करोड़
लोगों की मौत हुई थी। भुखमरी की विकराल स्थिति का अनुमान इस बात से लगाया जा
सकता है कि 2007 तक पूरे विश्व में करीब 92 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार थे जबकि
1990 में इनकी संख्या 84 करोड़ थी। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने इस मामले
पर गंभीरता बरतते हुए 2000 में तय लक्ष्यों में भुखमरी और गरीबी के शिकार लोगों
की संख्या 2015 तक आधी करना शामिल किया है। भारत में भुखमरी और कुपोषण के मामले
की आ॓र नजर डालें तो यहां स्थिति और भी भयावह है। पिछले महीने वर्ल्ड फूड
प्रोग्राम द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के आठ राज्यों में ग्रामीण
महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान खून की कमी का सामना करना आम बात हैं। दुनिया
का हर चौथा भूखा व्यक्ति भारतीय है। वाशिंगटन स्थित मिस मेनन नामक संस्था ने
अपने वैश्विक भूख सूचकांक में भारत को करीब दो दर्जन अफ्रीकी देशों से नीचे
स्थान दिया है। पूरी दुनिया में जितने बच्चे कुपोषण से पीड़ित हंै उनमें से आधे
से अधिक बच्चे भारत में हैं। संस्था की आ॓र से जारी शोध में कहा गया है कि चीन
के मुकाबले भारत में स्तनपान कराने वाली महिलाओं में कुपोषण होने के कारण
बच्चों में खून की कमी के मामले अधिक आ रहे हंै। सूचकांक में चेतावनी दी गई है
कि भारत के मध्यप्रदेश में समस्या काफी विकराल है और इसकी स्थिति इथोपिया से भी
बदतर है। इस रिपोर्ट में चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि भारत के महाराष्ट्र व
गुजरात जैसे राज्यों में भुखमरी की समस्या और गंभीर है जहां आर्थिक विकास काफी
हुआ है। भारत में कुपोषण की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि
जहां राजधानी दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे अधिक है वहीं करीब 40
फीसद बच्चे पांच साल से अधिक जीवित नहीं रह पाते। अधिकतर बच्चों की लंबाई अपनी
उम्र के मुकाबले कम है जबकि 26 फीसद बच्चों का वजन कम पाया गया। संयुक्त
राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ भारत में करीब 20 करोड़ लोग खाली पेट रात
में सोने के लिए विवश हैं।
पिछले दिनों न्यूयार्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे विश्व के
तमाम देशों की तुलना में भारत में वृहत पैमाने पर बाल पोषण कार्यक्रम चलाया जा
रहा है। इसके बावजूद भारत की हालत चिंताजनक है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की
तुलना में चीन की स्थिति बेहतर है और वहां पांच साल से कम उम्र के करीब सात
फीसद बच्चों का वजन उनके उम्र के मुकाबले कम है। इस मामले में विशेषज्ञों ने
चिंता जताई है कि गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ दो साल तक के बच्चों को पर्याप्त
पौष्टिक भोजन के लिए लालायित होना पड़ता है।अनाज के दामों में गिरावट आई है पर
अनाज संकट का अंत नहीं हुआ है। पूरे विश्व के साथ-साथ भारत की स्थिति लगातार
भयावह होती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र की तमाम योजनाओं के साथ-साथ केंद्र
सरकार की योजनाओं का फायदा किसे मिल रहा है, यह एक अहम सवाल है। हर रोज लोग भूख
और कुपोषण से मर रहे हैं पर सरकारी रिकार्ड कुछ और ही बयां करते हैं। महिलाओं,
बच्चों के साथ-साथ गरीबों को पौष्टिक भोजन की बात तो दूर, दो जून की रोटी तक
नसीब नहीं होती। राजधानी दिल्ली की सड़कों से गुजरते हुए कुपोषित बच्चों का भीख
मांगते दिख जाना आम है। दरअसल, स्वतंत्रता प्राप्ति के साठ साल बीतने के बाद भी
समाज के हाशिए पर रहे लोगों की हालत में कोई सटीक सुधार नहीं हुआ है। देश के कई
राज्यों में सरकार द्वारा चलायी जाने वाली नरेगाजैसी योजनाएं किस कदर लोगों
को सालों दर साल से भूखे पेट सोने वाले लोगों को उनकी परिस्थितियों से निजात
दिलाने में सक्षम हो रही हैं, यह सवाल आम लोगों के सामने है तो देश के नीति
निर्धारकों के सामने भी।

शनिवार, 28 जनवरी 2012

महिलाओ के खिलाप बढती हिंशा


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