क्यों आखिर क्यों?
क्यों आखिर क्यों?
यह समाज........
लडकियों के लिए असुरछित माहोल बना रहा हे,
और सरकार मौन होकर सब देख रही हे,
क्यों.....आखिर क्यों?
उनकी योनिकता को उनकी कमजोरी बना,
अत्याचार और शोषण कर रहा हे,
क्यों.....आखिर क्यों?
चुप बेठे हे,
सब सत्ता के गलियारे में,
चलो हम सब साथ मिलकर चलते हे,
खोल देगे नीद सोते हुए समाज की,
दिखा देगे की क्या हस्र होता हे,
किसी के ऊपर लगातार जुल्म-ओ -सितम करने के,
हम चुप नही बैठेगे,ना बनने देगे ऐसा माहोल
जहा दोयम दर्जे पर देखि जाती हे ओरते!!
यह समाज........
लडकियों के लिए असुरछित माहोल बना रहा हे,
और सरकार मौन होकर सब देख रही हे,
क्यों.....आखिर क्यों?
उनकी योनिकता को उनकी कमजोरी बना,
अत्याचार और शोषण कर रहा हे,
क्यों.....आखिर क्यों?
चुप बेठे हे,
सब सत्ता के गलियारे में,
चलो हम सब साथ मिलकर चलते हे,
खोल देगे नीद सोते हुए समाज की,
दिखा देगे की क्या हस्र होता हे,
किसी के ऊपर लगातार जुल्म-ओ -सितम करने के,
हम चुप नही बैठेगे,ना बनने देगे ऐसा माहोल
जहा दोयम दर्जे पर देखि जाती हे ओरते!!
डर लड़की होने का
एक डर जो पनपने नहीं देता हमारे सपने,
हमेसा चिपका रहता हे,
हमारे अस्तित्व से-
जो हर बक्त एहसास दिलाता हे हमें/
की तुम लड़की हो,
और कभी भी शिकार हो सकती हो,
किसी की भी ज्यादती की!!
एक डर जो पनपने नहीं देता हमारे सपने,
हमेसा चिपका रहता हे,
हमारे अस्तित्व से-
जो हर बक्त एहसास दिलाता हे हमें/
की तुम लड़की हो,
और कभी भी शिकार हो सकती हो,
किसी की भी ज्यादती की!!
लडकिया
कितना कुछ सह जाती हे लडकिया,
अक्सर चुप रह जाती हे लडकिया!
कहा तक हिफाजत रखे अपनी जब
घर में ही बेआबरू हो जाती हे लडकिया!
अक्सर चाह कर भी नहीं कर पाती कुछ भी,
अरमानो का गला घोट रह जाती हे लडकिया!
बदल लेती हे बक्त के साथ खुद को,
हर हाल में ढल जाती हे लडकिया!
घर से निकलते ही,घूरती हे कई निगाहे इनको,
हर नजर को नजरंदाज कर आगे बड जाती हे लडकिया!
बेटी किसी की, बहिन कभी,प्रेमिका भी होती,
रिस्तो के रंगों में रंग जाती हे लडकिया!
अक्सर चुप रह जाती हे लडकिया!
कहा तक हिफाजत रखे अपनी जब
घर में ही बेआबरू हो जाती हे लडकिया!
अक्सर चाह कर भी नहीं कर पाती कुछ भी,
अरमानो का गला घोट रह जाती हे लडकिया!
बदल लेती हे बक्त के साथ खुद को,
हर हाल में ढल जाती हे लडकिया!
घर से निकलते ही,घूरती हे कई निगाहे इनको,
हर नजर को नजरंदाज कर आगे बड जाती हे लडकिया!
बेटी किसी की, बहिन कभी,प्रेमिका भी होती,
रिस्तो के रंगों में रंग जाती हे लडकिया!
मुर्दों से बात नहीं करनी...
हो रहे अन्याय को देख,
वंचितों के मारे जा रहे हक़ को देख,
बड़ते जा रहे काले धंदो को देख,
किसी को भूख से मरता देख,
बेरोजगारी से आम आदमी को लड़ता देख
सरकारी योजनाओ को सिर्फ कागजो पर क्रियान्वित होता देख
,अगर तुम्हारे मन में,इस तंत्र के खिलाप गुस्सा नहीं आता,
और/ क्रांति करने का मन नहीं होता तो,
मुझे तुमसे कुछ नहीं कहना,
क्योकि में मुर्दों से बात नहीं किया करता..
हो रहे अन्याय को देख,
वंचितों के मारे जा रहे हक़ को देख,
बड़ते जा रहे काले धंदो को देख,
किसी को भूख से मरता देख,
बेरोजगारी से आम आदमी को लड़ता देख
सरकारी योजनाओ को सिर्फ कागजो पर क्रियान्वित होता देख
,अगर तुम्हारे मन में,इस तंत्र के खिलाप गुस्सा नहीं आता,
और/ क्रांति करने का मन नहीं होता तो,
मुझे तुमसे कुछ नहीं कहना,
क्योकि में मुर्दों से बात नहीं किया करता..
बचाब.........
तुम......
किस्मत के भरोसे
रहकर के,
नहीं बढ़ाते हो एक भी कदम,
अपनी सफलता के लिए,
इसलिय /तुम
असफल हो जीवन में !
तुम नहीं चाहते
कि-तुम्हे करनी पड़े मेहनत
अपनी सफलता के लिए,
इसलिय
अपनी नाकामी के लिए
तुम/अपनी
किस्मत को बीच में ले आते हो!
तुम......
किस्मत के भरोसे
रहकर के,
नहीं बढ़ाते हो एक भी कदम,
अपनी सफलता के लिए,
इसलिय /तुम
असफल हो जीवन में !
तुम नहीं चाहते
कि-तुम्हे करनी पड़े मेहनत
अपनी सफलता के लिए,
इसलिय
अपनी नाकामी के लिए
तुम/अपनी
किस्मत को बीच में ले आते हो!
मेरी उलझन............
आज तक समझ में नहीं आया,
जिन्दजी में सबसे जरुरी क्या हे,
कभी लगा की परिवार से बड़कर कुछ भी नहीं,
फिर प्यार को परिवार से ज्यादा महत्वता देने लगा,
कुछ दोस्त आये ऐसे फिर,
जिनके सामने प्यार का जूनून भी फीखा लगा,
अब लगता हे क्या यह व्यक्तिगत जिन्दगी ही,
क्या सब कुछ हे इन्सान को जिन्दगी भर के किये,
तो अपना दायरा सामाजिक गतिविधियों में भी बढाया,
और जब लगा यहाँ भी स्वार्थ सिध्दी हे,
और लोट कर बुध्दू घर को आया,
और अंत में यही समज पाया,
आज तक समझ में नहीं आया,
जिन्दजी में सबसे जरुरी क्या हे,
कभी लगा की परिवार से बड़कर कुछ भी नहीं,
फिर प्यार को परिवार से ज्यादा महत्वता देने लगा,
कुछ दोस्त आये ऐसे फिर,
जिनके सामने प्यार का जूनून भी फीखा लगा,
अब लगता हे क्या यह व्यक्तिगत जिन्दगी ही,
क्या सब कुछ हे इन्सान को जिन्दगी भर के किये,
तो अपना दायरा सामाजिक गतिविधियों में भी बढाया,
और जब लगा यहाँ भी स्वार्थ सिध्दी हे,
और लोट कर बुध्दू घर को आया,
और अंत में यही समज पाया,
जीवन एक चक्र हे,
हम जहा से शुरुवात करते हे,
आखिर में भी बही पहुचना अपनी मंजिल पा लेना लगता हे.!!
हम भी हे---------?
“हम भी हे संतान तुम्हारी,
हमसे न यु द्वेस भाव रखो,
मत मारो,कोखो में ही हमहो,
न यु तादात हमारी कम करो”
हमसे न यु द्वेस भाव रखो,
मत मारो,कोखो में ही हमहो,
न यु तादात हमारी कम करो”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें